पूर्ण गुरु पंडित राधा रमन मिश्र के जन्मदिन पर कानपुर वाले करौली बाबा ने कहा - उनके बिना मेरा अस्तित्व नहीं
पूजनीय पण्डित राधा रमन मिश्र का जन्मदिवस हर्ष और उल्लास के साथ कानपुर स्थित करौली सरकार पूर्वज मुक्ति धाम में मनाया गया। मौके पर पूरे भारत से भजन मंडिलियो ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई और पंडित जी का आह्वान किया। मौके पर करौली शंकर महादेव ने भी भक्तों के साथ अपने विचार साझा किए।
पूजनीय पण्डित राधा रमन मिश्र का जन्मदिवस हर्ष और उल्लास के साथ कानपुर स्थित करौली सरकार पूर्वज मुक्ति धाम में मनाया गया। मौके पर पूरे भारत से भजन मंडिलियो ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई और पंडित जी का आह्वान किया। मौके पर करौली शंकर महादेव ने भी भक्तों के साथ अपने विचार साझा किए। पंडित राधा रमन मिश्र के बारे में बात करते हुए वह भावुक हो गए और कहा कि उनके बिना आज उनका अस्तित्व नहीं होता। उन्होंने कहा कि पंडित जी तंत्र के सबसे बड़े ज्ञाता थे और जनकल्याण और परोपकार की भावना उन्हें वही से प्राप्त हुई। इसके बाद करौली शंकर महादेव ने बताया कि पंडित राधा रमन मिश्र एक पूर्ण गुरु थे। उन्होंने कहा कि एक गुरु मुख्य रूप हमारे जीवन में तीन तरह से कार्य करता है। उन्होंने कहा कि गुरु ब्रह्मा की भांति एक नए जीवन का सृजन करता है, पितृ परंपरा से तोड़कर गुरु परंपरा में जोड़ने का कार्य करता है। दूसरा गुरु विष्णु की भांति ध्यान साधना में लीन होकर आपका पालन पोषण करता है, आपको गढ़ता है। और अंत में गुरु भगवान शिव की तरह बुरी स्मृतियों और हर तरह की नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है। करौली शंकर गुरुदेव ने कहा कि यह सभी गुण पंडित राधा रमन मिश्र में भी थे और तभी पूरी दुनिया ने उन्हें पूर्ण गुरु का दर्जा दिया है। मौके पर करौली शंकर महादेव ने कहा "परम पूजनीय बाबाजी इस पृथ्वी पर पूरे 111 वर्ष रहे, शरीर एक माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति जन्म लेकर अपने भोग काटता है, और शरीर एक माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य 84 लाख योनियों के जन्म मरण के बंधन से सदा सदा के लिए मुक्त हो सकता है, अन्यथा मनुष्य योनि सबसे ज़्यादा निकृष्ट योनि है, लेकिन एक ही मायने में केवल यह मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ है क्यूकी यदि यह मनुष्य योनि आपको मिलती है तो आप अपने साथ साथ हज़ारो लाखों लोगों को भी 84 लाख योनियों के बंधन से मुक्त हो कर प्रेरित कर सकते हैं हैं ।" उन्होंने आगे कहा कि परम पूजनीय बाबाजी ने पूरे 111 वर्ष इस पृथ्वी पर लगाए और फिर महासमाधि ली । महासमाधि उसी को प्राप्त होती है जो ज्ञान को उपलब्ध हो चुका हो । ज्ञान को उपलब्ध होने के लिए कई मार्ग हैं उसमे सबसे ज़्यादा सर्वश्रेष्ठ मार्ग है, वह तंत्र का मार्ग है, सबसे सरल और प्रभावशाली मार्ग तंत्र के मार्ग से मुक्ति पाना है । बाक़ी सब लोग चाहे परिवार परंपरा के हो चाहे गुरु परंपरा के सब भटके हुए और मर कर भी भटकते ही रहते हैं । यदि आप मजबूर होते है, चाहे आप २४ घटने तप तपस्या में बैठे रहें, वह आपको ध्यान साधना करने ही नहीं देते, यही पितृ आपको ऐसे भ्रमित करते हैं की आपको लगता है की आप महात्मा बुध से भी आगे पहुँच गये हैं, परंतु वास्तव में ऐसा होता नहीं है । दरबार दिन भर देखता है किस प्रकार से लोग फँसे हुए हैं, इस से निकलने का एक ही रास्ता है तंत्र जिसका अर्थ है व्यवस्था, व्यवस्था को समझ कर उसने में जीने से सुख होता है, और यह सुख निरंतर हो सकता है, और इसी शांति, शांति से संतोष, संतोष से आनंद और आनंद से परम आनंद की प्राप्ति होती है और आप ज्ञान को उपलब्ध होते है और चौरासी लाख योनियो से मुक्ति होती है ।
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