देश में आम चुनाव के द्वारा लोग अपनी पसंद के प्रतिनिधि को चुनने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र होते है। वह स्वतंत्र रूप से अपने मत का प्रयोग या अपनी इच्छा से उसे अपना प्रतिनिधि चुनने का हक़ होता है। प्रत्येक पांच वर्षों के बाद देश का आम चुनाव होता है, जिसमें आप अपने प्रतिनिधि का स्वतंत्रता से चुनाव कर सकते है।
राजनितिक विश्लेषक एवं स्तम्भकार अभिषेक गुप्ता ने युवातुर्क के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी की कुछ पंक्तियों करते हुए बड़ा ही सुंदर विश्लेषण करते हुए कहा है कि – “जिन हाथों में शक्ति भरी है राजतिलक देने की, उन हाथों में ही ताकत है सर उतार लेने की।“ यह हर चुनाव के बाद याद आती हैं खासकर तब जब लोगों को लगता है कि उनकी सत्ता हमेशा बरकारा रहेगी परन्तु वे भूल जाते हैं कि जिस विजय का ताज उनके सर पर है वह आम जनता की बदौलत ही है| जनता जिसे चाहे सत्ता का ताज पहना दे, जिसे चाहे हटा दे |
भारत की राजनीति और चुनाव की प्रक्रिया के द्वारा ही एक सफल सरकार का गठन सम्भव हो पाता है। भारत में दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां है, एक राष्ट्रीय कांग्रेस और दूसरी भारतीय जनता पार्टी, जिसके इर्दगिर्द भारतीय राजनीति घुमती रहती है |
अभिषेक गुप्ता ने जमीनी हकिकत को दर्शाते हुए बताया है कि चुनावों के पहले जो राजनेता बड़ी ही विनम्रता से पेश आते है, लोगों से नीतियों और तरक्की के वादों की बौछार करते हैं, उन्ही राजनेताओं का चुनाव जीतने के बाद बर्ताव बिल्कुल ही अलग हो जाता है। उनके सामने आने वाली आम जनता की समस्याओं की उन्हें बिल्कुल भी परवाह नहीं होती है। कभी-कभी तो चुनाव जीतने के बाद राजनेता द्वारा आम लोगों को ही परेशान करने की बात भी सामने आती रहती है। राजनेताओं को बस सत्ता का सुख भोगने की पड़ी रहती है, इसके लिए वो अपने कुर्सी की ताकत का गलत इस्तेमाल करते हैं। उनके लिए जनता की सेवा उनके गौड़ हो जाती है |
राजनीति में पहले से ही मौजूद शक्तिशाली राजनेताओं के कारण सही व्यक्ति जो लोगों की सच्ची सेवा करना चाहता है वो कभी चुनाव नहीं जीत पाते हैं। ऐसे ताकतवर नेता अपनी अलग-अलग और अवैध रणनीति लगाकर चुनाव को जीतते है । वे आम लोगों में पैसे, खाने के सामान जैसी चीजों को बांटकर अपने चुनावी झांसे में फ़साने का काम करते है, और आम जनता लालच में आकर उनके झांसे में फसकर उन्हें अपना वोट दे देते हैं। जिसका खामियाजा इन्हें बाद में भुगतना पड़ता है |
आजादी के बाद दशकों तक भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कांग्रेस का दबदबा रहा। वर्ष 1989 का आम चुनाव इस राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव लेकर आया। जब भाजपा एक बड़ी राष्ट्रीय राजनीतिक ताकत के तौर पर उभरी और अगले एक दशक में उसने देश की राजनीति को द्विध्रुवीय बना दिया।
अभिषेक गुप्ता ने बताया कि एक बार फिर जब आम चुनाव 2024 के नतीजे आये हैं तो यह बात साफ हो गई है कि किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिली है | भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन बहुमत का जादुई आकड़ा नही पार कर पाई | हालांकि, एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला है और वह तीसरी बार गठबंधन की सरकार बनाने में सफल होगी | दूसरी ओर इंडिया अलायंस ने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है, यदि इंडिया अलायंस एनडीए में सेंध लगा ले तो उसका भी सत्ता वाला समीकरण सेट हो सकता है | इन सब नई परिस्थितियों के कारण एक बार फिर नीतीश कुमार चर्चा के केंद्र में हैं | चूँकि उनका इतिहास भी ऐसा रहा है कि वे कभी भी पार्टी बदल लेते हैं जिससे उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठता है |
दरअसल, नीतीश कुमार राजनीति के ऐसे बैलेंसिंग फैक्टर हैं, जो जिधर जाते हैं, वही पक्ष भारी लगने लगता है | नीतीश कुमार का एक पोस्टर भी वायरल हो रहा है जिसमें लिखा है-‘नीतीश सबके है’ इस पोस्टर के माध्यम से यही संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि लोकसभा चुनाव में बिहार में 13 सीटें जीतने वाली नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का महत्व गठबंधन की राजनीति में बढ़ गया है, साथ ही नीतीश कुमार की अहमियत भी |
अभिषेक गुप्ता ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तो जनता ने भरोसा दिखाया है लेकिन बीजेपी के प्रत्याशियों पर जनता ने भरोसा नही किया, जिसका एक कारण एंटी इनकंबेंसी भी हो सकती है | पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में वर्ष 2004 शाईनिंग इंडिया का नारा दिया गया और लोगों का मानना था कि बाजपेयी जी की सरकार बननी तो तय है लेकिन परिणाम बिल्कुल उल्टा रहा ठीक उसी प्रकार इस बार राम मंदिर का मुद्दा भी खूब चर्चा में रहा और लग रहा था की इस बार बीजेपी प्रचंड बहुमत से सत्ता में आने वाली है लेकिन जनता कुछ और मूड में ही थी |
इस बार के आम चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों ने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया और इंडिया अलायंस ने उम्मीदों से भी ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया है |
राहुल गाँधी ने जिस मजबूती से अखिलेश यादव की साईकिल को पकड़ी वह सरपट दौड़ पड़ी और बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया | उधर पश्चिम बंगाल में ममता दीदी भी मजबूती के साथ खड़ी रहीं | कुल मिलकर यह कह सकते हैं कि इसब बार भी सरकार तो एनडीए बना लेगी लेकिन उसे एक मजबूत विपक्ष का भी सामना करना पड़ेगा | साथ ही एनडीए के लिए यह सफ़र बहुत मुश्किल होने वाला है | क्योंकि NDA के जो दो बड़े घटक हैं नितीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू इन दोनों में से कोई भी अलग होता है या इनमें मतभेद होता है तो बीजेपी की मुश्किलें बहुत बढ़ सकती हैं | आज के समय में ये दोनों किंग मेकर की भूमिका में हैं |
भारतीय राजनीति अच्छे और बुरे अनुभवों का एक मिश्रण है। जहां एक अच्छा नेता अपनी अच्छी छवि से भारतीय राजनीति को उजागर करता है तो वही दूसरी तरफ नेताओं के गलत तरीके से चुनाव जितना और अपने निजी फायदे के लिए राजनीति करना इसकी छवि को धूमिल बनाता है। यहां की जनता को देश में लोकतांत्रिक हक़ दिया गया है की वो अपनी पसंद का नेता चुन सकें