70th Independence Day: समानता ही स्वतंत्रता है

स्वतंत्रता की परिभाषा हर किसी के लिये अलग-अलग है। यह हर व्यक्ति, समाज और परिस्थिति के लिये अलग तरह से परिभाषित की जाती है। लेकिन यहां जब देश की स्वतंत्रता की बात आती है तो राजनीतिक स्वतंत्रता और वहां की जनता के अधिकारों की बात होती है।

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Ankit Pal
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70th Independence Day: समानता ही स्वतंत्रता है

70th Independence Day - समानता ही स्वतंत्रता है

स्वतंत्रता की परिभाषा हर किसी के लिये अलग-अलग है। यह हर व्यक्ति, समाज और परिस्थिति के लिये अलग तरह से परिभाषित की जाती है। लेकिन यहां जब देश की स्वतंत्रता की बात आती है तो राजनीतिक स्वतंत्रता और वहां की जनता के अधिकारों की बात होती है।

भारत को आज़ाद हुए 70 साल हो गए हैं। एक राष्ट्र के कालखंड में ये समय बहुत ही कम होता है। लेकिन किसी देश की दशा और दिशा को समझने के लिये ये काफी होता है। आज हम विदेशी शासन के अधीन नहीं हैं, जाहिर है कि अपने राजनीतिक फैसले हम स्वयं लेते हैं। लेकिन जब तक देश में प्रजातंत्र पूरी तरह से स्थापित नहीं होता तब तक स्वतंत्रता अधूरी है। भारत प्रजातंत्र तो है लेकिन क्या आम आदमी के अधिकार पूरी तरह से सुरक्षित हैं? क्या समाज के दबे,  कमज़ोर और गरीब अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर पाते हैं ? हमें देखना होगा कि समाज के सभी वर्ग को अपने अधिकारों की जानकारी हो, उसे पता हो कि गरीब या कमज़ोर होने के बाद भी उसके कानूनी और सामाजिक अधिकार उतने ही सुरक्षित हैं जितने कि किसी अमीर या प्रभुता संपन्न लोगों के होते हैं। यानि जब आपको इंसाफ के लिये लड़ना पड़े तो आजादी पर सवाल खड़ा होता है।

समाज में समानता हो और ये समानता देश के संविधान और कानून की नज़रों में होनी ज़रूरी है। यानि जाति,  धर्म और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो। उसके मूलभूत अधिकारों  का हनन न हो। लेकिन अपने अधिकारों की पूर्ति के लिये हम दूसरे का अहित न करें ये भी सोचना होगा। तभी सही अर्थों में समानता आ सकती है। महज़ कानून बनाने भर से समानता नहीं आयेगी। न ही भेदभाव कम होगा। ये तभी होगा जब समाज के हर तबके में शिक्षा का प्रसार हो और सबको शिक्षा का समान अवसर मिले।

स्वतंत्रता का एक अर्थ आत्मसम्मान भी है। अर्थशास्त्री और नोबेल विजेता अमर्त्य सेन ने अपनी किताब Development as Freedom में कहा है कि किसी देश या समाज का विकास उस देश की जीडीपी, तकनीकी प्रगति और अधुनिकीकरण से तय किया जाता है, लेकिन सामाजिक और आर्थिक व्यवस्थाएं, राजनीतिक व नागरिक अधिकार महत्वपूर्ण कारक हैं, जो विकास के रूप में स्वतंत्रता की संकल्पना का निर्धारण करते हैं। उनका कहना है कि दुनिया में विकास के बावजूद आर्थिक विपन्नता के कारण समाज का एक बड़ा वर्ग मूलभूत स्वतंत्रता से वंचित है। इसलिये आर्थिक प्रगति भी चाहिये और इसके लिये समान आर्थिक अवसर की दरकार है। जाहिर है देश की सत्ता संभाल रहे लोगों को सबके लिये रोज़गार के समान अवसर उपलब्ध कराने होंगे।

देश की आधी आबादी महिलाओं की है मगर समाज उनको या तो उनके अधिकारों से वंचित रखता है या तो सवाल उनपर सवाल उठाता है। नतीजतन मर्द प्रधान मानसिकता वाले समाज में महिलाओं को अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है। महिलाओं की स्थिति के लिये समाज खुद ज़िम्मेदार है, क्योंकि बचपन से ही लड़के-लड़की में भेद किया जाता है। चाहे वो सुविधाएं हो या फिर पढ़ाई-लिखाई या फिर रोजगार की बात हो। समाज में आज भी लड़की पैदा होने पर मातम मनाया जाता है और भ्रूण हत्या तक की जाती है। अपने मन से शादी कर लेने पर ऑनर के नाम पर लड़कियों की हत्या कर दी जाती है। समाज को ये सारी दीवारें गिरानी होंगी। लेकिन सदियों से चली आ रही परंपराओं को एक बार में खत्म कर देना संभव तो नहीं पर बदलाव की अलख जलानी भी ज़रूरी है। इसके लिये लड़कियों की शिक्षा पर सिरे से ध्यान देना होगा। शिक्षा ही उन्हें आत्मनिर्भर बनायेगी।

दलितों पर अत्याचार आज भी जारी है तमाम कानूनों के बावजूद वो अधिकारों से वंचित हैं। तमाम राजनीतिक दल जो दलित राजनीति करते हैं, उन्होंने भी उन्हें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है। लेकिन शिक्षा और आर्थिक प्रगति के क्षेत्र में वो अब भी पीछे हैं। उसी तरह से अल्पसंख्यकों को लेकर देश का हर राजनीतिक दल राजनीति करता है लेकिन विकास के ग्राफ में वे हाशिये पर हैं। अगर समाज के ये हिस्से पिछड़े रह जाते हैं तो समानता का सपना अधूरा रहेगा।

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने समाज के सभी वर्गों के लिये सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक क्षेत्रों में न्याय पर बल दिया है। उनके शब्दों मे “ न्याय का मतलब हमेशा से ही समानता, समान अनुपात एवं क्षति पूर्ति रहा। न्याय निष्पक्षता दर्शाता है। ” अंबेडकर मनुष्य की समानता पर विश्वास करते थे। उनका विचार था कि “ यदि मनुष्य समान है तो सभी मनुष्यों में समान सत्व है और वह समान सत्व उन्हें मौलिक अधिकार व समान स्वतंत्रता का अधिकारी बनाता है। ”

हज़ारों देशवासियों ने अपना बलिदान देकर हमें विदेशी शक्तियों से ये आज़ादी दिलाई है। इसके लिये हमें स्वतंत्रता और अनुशासन में सामंजस्य के महत्व को समझना होगा। इनके संतुलन से ही समाज में समानता और समरसता लाई जा सकती है और वही सच्ची स्वतंत्रता भी होगी।

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