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70 Stories of Independent India-Part 6

भारत की आज़ादी के 70 साल पूरे हो गए हैं। इन बीते सालों में हिंदुस्तान ने बहुत कुछ पाया है तो बहुत कुछ खोया भी है। 15 अगस्त को इंदिरा गांधी लालकिले से भाषण दे रहीं थी, इसी दौरान ख़ुफ़िया रिपोर्ट्स से पता चला कि उनकी जान को ख़तरा है। उन्हें सलाह दी गई कि वो सिख गार्ड्स को अपनी सिक्योरिटी से अलग रखें, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और नतीजा ये हुआ कि इंदिरा गांधी को एक हमले में अपनी जान गवांनी पड़ी।

News Nation Bureau | Updated : 20 August 2016, 11:30:32 AM
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भारत की आज़ादी के 70 साल पूरे हो गए हैं। इन बीते सालों में हिंदुस्तान ने बहुत कुछ पाया है तो बहुत कुछ खोया भी है। 15 अगस्त को इंदिरा गांधी लालकिले से भाषण दे रहीं थी, इसी दौरान ख़ुफ़िया रिपोर्ट्स से पता चला कि उनकी जान को ख़तरा है। उन्हें सलाह दी गई कि वो सिख गार्ड्स को अपनी सिक्योरिटी से अलग रखें, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और नतीजा ये हुआ कि इंदिरा गांधी को एक हमले में अपनी जान गवांनी पड़ी।

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इंदिरा गांधी की मौत की ख़बर ने पूरे देशवासियों को स्तब्ध कर दिया था, जिसके बाद पूरे देश में बदले की भावना भड़क उठी। जब दिल्ली में दंगे की आग ने भयंकर रूप ले लिया तब राजीव गांधी ने रेडियो पर लोगों को संबोधित करते हुए कहा “दिल्ली में जो कुछ हो रहा है वो इंदिरा जी की शहादत का अपमान है।”

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देश के संसदीय इतिहास में पहली बार कोई पार्टी 416 सीटों के साथ सत्ता में लौटी थी, इसलिए सरकार के लिए चुनौती काफ़ी बड़ी थी। राजीव गांधी के शासनकाल के दौरान कई ऐसे फ़ैसले लिए गए जो आगे चलकर क्रांतिकारी साबित हुए। कंप्यूटर पर इम्पोर्ट टैक्स घटाना, PCO लगाने की छूट देना, वोट देने की न्यूनतम उम्र 18 साल करना कुछ ऐसे ही ऐतिहासिक फैसलों में शामिल था। 

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1989 में वीपी सिंह ने अलग पार्टी बनाकर राजीव गांधी के ख़िलाफ मोर्चा खोल दिया। इसके बावजूद राजीव सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में उभरे। हालांकि उनके सामने 1977 का सियासी चक्र ख़ुद को दोहरा रहा था, जब केंद्र में दूसरी गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी।

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साल 1990 में प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने आरक्षण पर मंडल कमीशन की सिफ़ारिश लागू करने का एलान किया। देश आरक्षण के विरोध और समर्थन में बंट गया था। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर बनाने का बीड़ा उठाकर रथयात्रा पर निकल पड़े।

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5 नवंबर 1990 को 58 सांसदों के साथ चंद्रशेखर सिंह ने अपनी अलग पार्टी बना ली। उधर वीपी सिंह की सरकार गिर गई, तब राजीव गांधी ने चंद्रशेखर सिंह को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने का फ़ैसला किया। लेकिन आगे चलकर बढ़ते मतभेदों की वजह से कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया।

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कांग्रेस ने जैसे ही तत्कालीन सरकार से समर्थन वापस लिया, मध्यावधि चुनाव का ऐलान हो गया। लेकिन इससे पहले देश को एक और झटका लगने वाला था, 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। भारत के लिए इस सदमे से उबर पाना काफी मुश्किल भरा था।

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एक तरफ़ देश में आरक्षण का मामला शांत हो रहा था तो वहीं दूसरी तरफ़ कश्मीर में उग्रवाद का मसला उफ़ान पर था। हालांकि भारतीय सेना की तैनाती के साथ हिंदुस्तान की सरहदें महफ़ूज़ थी। राजीव गांधी की मौत के बाद पी. वी. नरसिंह राव ने सत्ता की बागडोर संभाली। लाइसेंस राज ख़त्म हुआ, विदेशी निवेश का रास्ता साफ़ हुआ, लेकिन तब तक राजनीति मज़हबी रंग ले चुका था।

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1989 के आम चुनावों में आरएसएस और बीजेपी ने अयोध्या का मुद्दा उठाया। 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे का विध्वंस होने के बाद हज़ारों कारसेवक बेकाबू हो गए और पूरे हिंदुस्तान में दंगा भड़क उठा। इस दंगे में हज़ारों लोगों की जान गई। इस घटना के बाद 1993 में पहली बार मुंबई में सीरियल ब्लास्ट हुआ। माना जाता है कि भारत में आतंकवाद की शुरुआत यहीं से हुई थी।

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1996 में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी, लेकिन 13 दिन में ही सरकार गिर गई। इसके बाद कांग्रेस के समर्थन में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी। फरवरी 1998 में मध्यावधि चुनाव के बाद बीजेपी ने टीडापी, एआईडीएमके और टीएमसी जैसे दलों के साथ गठबंधन सरकार बनाई। हालांकि आपसी खींचतान की वजह से अप्रैल 1999 में एक टर्म में लगातार दूसरी बार देश को मध्यावधि चुनाव का सामना करना पड़ा।

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3 साल की सियासी अस्थिरता की क़ीमत हिंदुस्तान को सरहद पर चुकानी पड़ी। भारतीय सेना को मई 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठियों के दाख़िल होने की ख़बर मिली। पहले तो पाकिस्तान ने अपना पल्ला झाड़ लिया, लेकिन मुठभेड़ में मारे गए घुसपैठियों के पास से मिले दस्तावेज़ों ने पाकिस्तान के नापाक हरकतों की पोल खोल दी।

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